स्वाधीनता प्राप्ति के पश्चात ‘स्वत्व’ की अनुभूति के आधार पर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में ‘स्व’ का तंत्र कैसे विकसित हो यही जनः मन द्वारा अपेक्षित थी। यदि बालक के मन में स्वाभिमान, स्वानुशासन, स्वावलम्बन, स्वधर्म, स्वदेशप्रेम, स्वसंस्कृति तथा अतीत के गौरवशाली परम्परा आदि के प्रति आत्मीयता व अपनत्व का भाव विकसित किया गया होता तो भावात्मक एकात्मता प्रत्येक भारतीय का स्वभाव बन जाता। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में योग्य व्यक्तित्व का अभाव व अकाल आज दिखायी न देता। राष्ट्र निर्माण, कल-कारखानों के विकास, यातायात, स्वास्थ्य,शिक्षा आदि अनेक योजनाएं बनी परन्तु जिनके बल पर राष्ट्र की शा स्वतता निहित है अर्थात् व्यक्तित्व निर्माण का कार्य नहीं हुआ।
अतः आज देश की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक,शिक्षा व स्वास्थ्य को सुव्यवस्थित करने हेतु ऐसे विद्यालयों की आवश्यकता है जहां स्वभाषा, स्वसंस्कृति, स्वावलम्बन एवं जीवन आदर्शो के ज्ञान के साथ-साथ बालक के जीवन में अपने महापुरूषों, उनके कृतियों तथा गौरवशाली परम्परा के प्रति गौरव व स्वाभिमान के भाव जाग उठे। यही भावात्मक एकता का स्थायी आभार चिरकाल तक बना रहेगा, मातृभूमि का कण-कण पवित्र हो उठेगा, व्यक्ति-व्यक्ति में श्रद्धा, आस्था का रूप धारण कर उसके कर्मशक्ति को प्रेरित कर उसमें से देवत्व का प्रकटीकरण कर सकेगा। यही राष्ट्र की चिरंजीवी शक्ति होगी।
प्रबन्धक 
श्रीमती कलावती सिंह